मं ने बेट: एक नई सोच की शुरुआत भारत में, परिवारों में बेटा और बेटी को लेकर विचारधाराएं हमेशा से विभिन्न रही हैं। पारंपरिक सोच में बेटियों को अक्सर पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि बेटों का प्रोत्साहन किया जाता है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस सोच में बदलाव आया है और अब लोग बेटियों को भी समान अवसर देने की बात कर रहे हैं। बेटा और बेटी: असमानताओं का मुकाबला दुनिया भर में, लड़कों और लड़कियों के बीच कई सामाजिक और आर्थिक असमानताएं हैं। लड़कों को अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य संसाधनों में प्राथमिकता दी जाती है। वहीं दूसरी ओर, लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सुरक्षा, शिक्षा का अभाव, और सामाजिक दबाव। इस संदर्भ में, हमें यह समझना होगा कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होना चाहिए; दोनों को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए। सामाजिक बदलाव की आवश्यकता बेटों और बेटियों के बीच की सोच में बदलाव लाने के लिए हमें समाज में सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता है। इसके लिए विद्यालयों में और परिवारों में समानता की शिक्षा देना बेहद जरूरी है। शिक्षा केवल एक कौशल का विकास नहीं है, बल्कि यह सोच को भी विकसित करती है। जब बच्चों को यह सिखाया जाता है कि लड़का और लड़की दोनों ही समान हैं, तो वे बड़े होकर इस सोच को आगे बढ़ाते हैं। बेटियों की लीडरशिप आज की दुनिया में, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। बिजनेस से लेकर खेल, विज्ञान, और राजनीति में, बेटियों ने साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि हम अपनी बेटियों को प्रोत्साहित करें और उनके सपनों को साकार करने में मदद करें। जब हम बेटियां को संजीदगी से लेते हैं, तब वे अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ सकती हैं। कानूनी पहलें और उनके प्रभाव भारत सरकार ने भी इस दिशा में कई कानून बनाए हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना जैसे कार्यक्रम महिलाओं के अधिकारों को सशक्त बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये कानून न केवल लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, बल्कि समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में भी सहायक हैं। निष्कर्ष आज का समय एक बदलाव का प्रतीक है, जहां मं ने बेट का मतलब केवल बेटों से नहीं, बल्कि बेटियों की भी अहमियत से है। हमें चाहिए कि हम मं ने बेट का नारा अपने जीवन में अपनाएं और बेटियों को भी उतनी ही अहमियत दें जितनी बेटों को। जब हम ऐसा करेंगे, तब हम न केवल अपनी बेटियों को सशक्त बनाएंगे, बल्कि समाज में एक समानता का आधार भी रखेंगे। यह बदलाव हमारे आने वाले भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आइए, हम सब मिलकर कायल हों कि बेटा और बेटी दोनों एक समान हैं और उन्हें समान अवसर, शिक्षा तथा समर्थन मिले ताकि वे अपने सपनों को साकार कर सकें।
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