बेटा बचाओ, बेटी पढ़ाओ: आवश्यक कदम और समर्पण भारत में पुरुष वर्चस्व की संस्कृति के चलते बेटियों के प्रति भेदभाव एक गंभीर समस्या बनी हुई है। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान ने इस सामाजिक दासता को समाप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। यह निबंध विषय की गहराई में जाने का प्रयास करेगा, ताकि हम समझ सकें कि हमें अपने समाज में बेटियों की स्थिति सुधारने के लिए क्यों और कैसे काम करना चाहिए। इतिहास की परछाई भारत में पारंपरिक रूप से बेटियों को कम अहमियत दी जाती रही है। जमीनी स्तर पर विषय की गंभीरता को समझने के लिए, हमें इतिहास में झांकना होगा। कई सदियों से, बेटियों को केवल विवाह के लिए तैयार किया जाता था, जबकि शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर ध्यान नहीं दिया जाता था। इस सोच ने एक ऐसा समाज बनाया, जहां बेटियों का जीवन लगभग सीमित हो गया। अभियान का उदय “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को भारत सरकार द्वारा की गई थी। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य लैंगिक भेदभाव को समाप्त करके बेटियों को जीवन के हर क्षेत्र में उच्च स्थान दिलाना है। इसके अंतर्गत विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया गया है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा। शिक्षा की महत्ता शिक्षा एक ऐसा उपकरण है, जो बेटियों को आत्मनिर्भर बना सकता है। जब बेटियों को शिक्षा मिलती है, तो वे न केवल अपने लिए बल्कि अपने पूरे परिवार और समाज के लिए एक बेहतर भविष्य की निर्माण कर सकती हैं। शिक्षा से उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता होती है और वे सशक्त बनती हैं। स्वास्थ्य और सुरक्षा बेटियों की सेहत और सुरक्षा, उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है। कई जगहों पर अब भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएं सुनाई देती हैं। इस संदर्भ में, सरकार और समाज को एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है। सामाजिक जागरुकता और सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करके ही हम बेटियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान कर सकते हैं। समाज में बदलाव जब हम बेटियों को बचाने और पढ़ाने की बात करते हैं, तो यह केवल एक सरकारी नीति नहीं होनी चाहिए। यह एक सामाजिक दायित्व है। समाज के हर वर्ग से अपील की जानी चाहिए, कि वे अपने दृष्टिकोण को बदलें। हमें पारंपरिक सोच को तोड़ते हुए बेटियों को अपने परिवार में बराबरी का स्थान देना होगा। नकारात्मक मानसिकता को चुनौती समाज में कई बार बेटियों को बोझ समझा जाता है। इस मानसिकता को बदलने के लिए हमें शिक्षा, संवाद, और जागरूकता की आवश्यकता है। हर माता-पिता को अपने बच्चों के लिए एक समान दृष्टिकोण रखना चाहिए, ताकि बेटियाँ भी अपने सपनों को पूरा कर सकें। नतीजा “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” नारा सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि एक सोच है। जब हम इसे अपने जीवन में अपनाएंगे, तभी हम एक समान समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे। बेटियों में संभावनाएं अनंत हैं, उन्हें केवल एक अवसर और समर्थन की आवश्यकता है। इस तरह, हमें “बेटा बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के सिद्धांत पर आधारित एक मजबूत और सशक्त समाज की स्थापना के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए। यह न सिर्फ हमारे देश के विकास में सहायक होगा, बल्कि एक नई सोच और विचारधारा को भी जन्म देगा।
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